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Karva Chauth Katha: जाने क्या है, करवाचौथ व्रत की कथा और नियम

करवा चौथ का व्रत पूरे भारत में बनाए जाने वाला एक पवित्र त्यौहार है। करवा चौथ का त्योहार हर सुहागिन के लिए ईश्वर का वरदान है। बहुत पहले से चली आ रही प्रथा के अनुसार विवाहित स्त्री अपने पति की दीर्घायु और स्वास्थ्य की मंगलकामना करके चंद्रमा को जल अर्पित कर व्रत का समापन करती है।

स्त्रियों में करवा चौथ के प्रति इतना अधिक श्रद्धा भाव होता है कि वह कई दिन पहले ही इस व्रत के लिए तैयारी शुरू कर देती है। पति की दीर्घायु के लिए निर्जल व्रत रखना नारी के प्रेम व सहनशक्ति का ही परिचायक है

इस बार करवा चौथ पूजा मुहूर्त 2023 शाम 06:05 से शाम 07:21 बजे तक है। इसके अलावा चंद्रोदय रात्रि 9:00 बजे है। करवा चौथ व्रत का समय सुबह 06:40 से शाम 09:00 बजे तक है।

पुरानी परंपरा को निभाती हुई सुहागिन हर युग में इस त्यौहार की गरिमा को संभालने के लिए स्वयं को पूरा दिन भूखा रखती है। पति को ही जीवन का आधार मानने वाली नारी हमेशा पति के सुख में ही अपना सुख देखती हैं।

यह पर्व भारतीय नारियों का अहम त्यौहार है इस दिन वे अपने पति के कल्याण और उसकी लंबी आयु के लिए पूरा दिन निर्जला व्रत रखती है। रात को चंद्रमा के दर्शन उपरांत पूजा पाठ और पति के दर्शन करके ही वे अपना फलाहार इत्यादि ग्रहण कर व्रत का समापन करती है।

पढ़ी-लिखी कामकाजी महिला हो या घरेलू महिला दोनो ही अपने पति के साथ अपने गठबंधन को मजबूत और सशक्त बनाए रखना चाहती हैं। जो भी स्त्री पूरी श्रद्धा और नियम से इस व्रत को रखती है उसे इसी प्रकार का फल प्राप्त होता है।

करवाचौथ की कहानी

करवा चौथ व्रत प्रारंभ की कथा इस प्रकार है। किसी समय में सात भाई एक साथ मिलकर एक गांव में प्रेम से रहते थे। वह सभी काफी संपन्न और सुखी से अपना जीवन व्यतीत कर रहे थे। इन सातों भाइयों की केवल एक ही बहन थी। जिसे सभी भाई अपनी जान से ज्यादा प्यार करते थे।

सातो भाइयों ने एक योग्य वर तलाश कर उसकी बड़ी धूमधाम से शादी कर दी। बहन की शादी के बाद करवा चौथ का पर्व आया। तब उसने पूरा दिन अपने पति के कल्याण की कामना लिए बिना जल पिए व्रत रखा। सभी भाइयों ने अपनी प्राण प्यारी बहन को पति सहित अपने ही पास रहने को राजी कर लिया था।

वह अपने पति सहित भाइयों के साथ ही रह रही थी।कार्तिक कृष्ण पक्ष की तृतीया को इस व्रत के दिन सुबह से ही आकाश में बादल छाए हुए थे। रात्रि को भी बड़ी देर तक बादलों के कारण चंद्र देवता के दर्शन नहीं हो पाए। सातों भाई जान रहे थे कि उनकी बहन सुबह से निर्जल है। आखिरकार सातों भाइयों के धैर्य का बांध टूट गया।

वे अपनी बहन की दशा पर द्रवित हो गए। तब उन्होंने मिलकर एक पेड़ पर एक दीपक जलाकर अपनी बहन से कहा की चांद निकल आया है। बहन ने भी भाइयों के कहने पर उसे पेड़ के दीपक को चंद समझ लिया और करवा चौथ व्रत की पूजा करनी शुरू कर दी।

पूजा समाप्ति करने के बाद उसने जल का प्रसाद ग्रहण ही किया था, कि एक आदमी ने आकर उसे बताया कि उसके पति की मृत्यु हो गई है। यह समाचार सुनकर वह रोने लगी। उसके भाइयों ने यह जब सुना तो उसे अपनी गलती का एहसास हुआ। वह समझ गए कि यह सब कुछ उनके अपराध के कारण हुआ है।

तब सभी भाई अपनी बहन को सारी बात बताते हैं और अपनी गलती के लिए क्षमा मांगने लगे। बहन ने अपने भाइयों को माफ तो कर दिया, लेकिन अपनी पति के शव को अपनी गोद में रखकर वर्ष भर उसकी देखभाल करनी शुरू कर दी। फिर जब दोबारा कार्तिक कृष्ण तृतीया का करवा चौथ व्रत दोबारा आया, तब उसने अपनी पूजा प्रारंभ की।

उसने करवा चौथ की पूजा पूरे विधि-विधान एवं नियम से की। आकाश में भी चंद्र देवता अपनी आभा के साथ चमचम चमकती चांदनी बिखरते हुए अपने पूर्ण रूप में मंद मंद मानो मुस्कुरा रहे थे। विधि विधान से पूजा अर्चना करने के बाद उसके पति जीवित होकर उठ बैठे, जैसे वे गहरी निंद्रा में सोए हुए थे।

उसके जीवित हो उठने पर सभी के हर्ष का ठिकाना ना रहा। चंद्र देवता की कृपा से सात भाइयों की बहन पुनः सुहागन हो गई। उसके बाद वह अपने पति एवं सात भाइयों के साथ सुखी पूर्वक जीवन व्यतीत करने लगी।

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